कच्चे धागे !!!
मैंने बांधे थे कुछ कमजोर धागे
वक़्त के एक पेड़ पर
जहा गर्मियों मे बचपन मे
हम तुम खेला करते थे
तुम भाग कर तितली
बन जाया करती थी
और मे चाह कर भी
फूल न बन पता!
हमारी शादी पर मुझे अभी
याद हे उस पेड़ के डाली
ने दी थी वेदी पर गवाही!
स्तुति को अक्सर तुम बताती की
पेड़ के बंधे धागे के छोर से
निकल के वो आई हे
जब भी लडती मुझसे तुम
यही कहा करती वो पेड़ के
धागा हे जो मुझे तुमसे दूर
जाने नहीं देता!!
5 comments:
अच्छा प्रयास।
bahut khoob...
@manoj and Dilip ji thanks a ton!
Awesome lines मे चाह कर भी फूल न बन पता!
बहुत बेहतरीन भाव!
Post a Comment