वो एक ज़िंदगी, जब आई थी छूने
तो कोई वादा तो लिया नही उसने
की बैठी थी उम्र भर
मेरे पहलू मे, मेरे लिए हरदम
सोचती, जागती, हस्ती, खेलती
हमेशा ताकेगी मुझे, हर ओर से
ये चुभन हमेशा होगी
ना कहा था उसने कभी
ना कभी बोला था उसने की
हर रंग मेरे उसकी रोशनी होगी
कटोरों में भरी चाँदनी होगी
कभी तो अमावस भी होगी
कभी तो गम के साए भी होंगे
ज़िंदगी तुझसे कोई शिकवा नही
ये भी तो कम नही
की तू छू कर गयी
थी कभी...
5 comments:
ye bhi kam nahi ki tu chhukar gayi thi kabhi...
zindagi..ek behtareen kavita ..revealing the senstitvity of amitabhji.urf..khair..
bahut hi sundar shuruaat..
likhte rahe..
राम राम जी... नये ब्लॉग हेतु बहुत बहुत शुभकामनाए... आशा है निरंतर आपकी रचनाए मिलती रहेगी
ब्लॉग की इस दुनिया में आपका स्वागत है
ज़िंदगी तुझसे कोई शिकवा नही
ये भी तो कम नही
की तू छू कर गयी
थी कभी....
सुंदर भावपूर्ण कविता
ज़िंदगी तुझसे कोई शिकवा नही
ये भी तो कम नही
की तू छू कर गयी
थी कभी...
bas...aapne la-alfaz kar diya...
bahut sundar...
thank you...:)
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