Friday, July 4, 2008

~~~~~~दुरिया~~~~~~

दुरिया बहुत करीब से
गुजर जाती हे
ए जाने वाले
तेरे आने
की आस में
जिंदगी सीढ़ियो पर
खड़ी कब से न जाने
कितनी राते
कितने चाँद निहारते
हुए गुजर जाती हे

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

जिंदगी सीढ़ियो पर
खड़ी कब से न जाने
कितनी राते
कितने चाँद निहारते
हुए गुजर जाती हे

क्या बात है.....बहुत खूब.....

कुश said...

सुंदर ख्याल बाँधा है आपने

रंजू भाटिया said...

खुबसूरत ख्याल लिखा है आपने ..

तेरे आने
की आस में

यह आस ही तो नही टूटती है .
कितनी राते
कितने चाँद निहारते
हुए गुजर जाती है ....
..बहुत खूब

Morpankh said...

bahut khoob, sensitivity nazar aati hai aapke likhe hue mein.
Aise hee aur isse bhi kahin behtar likhte rahiye..:)

Morpankh said...

aur bhi kai sari rachnaon ka intzaar rahega...

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!! वाह!