Thursday, July 10, 2008

मेरा दोस्त अभि



मेरा दोस्त अभि
एक ऐसी कहानी
हे जो मै
रोज़ पढ़ता हु
और हर बार
वो एक दिलचस्प
दिल को छूती
महसूस होती हें
मेरा दोस्त अभि
जितने बार भी
गिरता हे
ठोकर खाता हें
हमेशा मुस्कुरता हें
उसकी हाथ की छड़ी
उसे रास्ता दिखाती हें
पर कभी नही
लगता की उसकी
आंखे नही हे
उसके कपड़ो मे
सुबहे की चमक
और उसके बालो को
देख, मै हमेशा
दंग रह जाता हु
मेरा दोस्त अभि
जब भी किसी लड़की
से मिलता उसके
हाथो को छू कर
कहता की
तुम दुनिया मे
सब से खुबशूरत आकृति हो
बस उनके चहरे की
चमक देख
मै कई बार सोचता
जिनको दुनिया दिखाई
देती हें
उन्हें हर किसी में
कोई त्रुटी नज़र आती हें
मेरा दोस्त अभि
कभी ये नही कहता की
कोई अच्छा या बुरा हे
उसकी आँखों से
सब बहुत
खुबशूरत मालूम होते हे
मेरा दोस्त अभि
कभी नही कहता की
भगवान ने मुझे कुछ
कम दिया
और हम सब तो
बस खुदा को
कोसते रहते हें
मेरा दोस्त अभि
निस्वार्थ सब का बुलाता
हे बताता हे
हाथ थामे चलता हे
पर जिसे सब
देखता हे
वो हाथ थाम कर भी
साथ नही होता
उसकी आंखे
अपने स्वार्थ मे
अंधी होती हे
मेरा दोस्त अभि
तुम्हारी मासूमियत
मुस्कुराती रही
बस
हम सब के दिलो
मे एक अभि
जागे
मेरा दोस्त अभि

6 comments:

pallavi trivedi said...

अच्छा लगा आपके दोस्त अभि के बारे में जानकार....आपकी दोस्ती इसी तरह हमेशा बनी रहे! अच्चे दोस्त बहुत मुश्किल से मिलते हैं!

कुश said...

हर आदमी अभी बन जाए तो कितना अच्छा हो.. आपकी लिखावट बहुत संतुलित है

डॉ .अनुराग said...

ham sab ke dilo me kahi na kahi ek abhi rahta hai....jarurat hai use samne laane ki....

vipinkizindagi said...

अच्छा हैं

Ila's world, in and out said...

आपके दोस्त अभि और उसकी तमाम खासियतों को सलाम.अनुरागजी से सहमत हूं कि हम सब में एक अभि बसता है,ज़रूरत है उसे खोज निकालने की.स्वतन्त्रता दिवास की बधाई स्वीकर करें.

art said...

prabhaavi lekhan