वो रुकी थी दहलीज़ पर
खड़ी थी वहा
कुछ आने का इंतज़ार था
पीछे से माँ की आवाज़ आई
"कजरी देख चुलहा गरम
हो गया क्या ?"
पर उसके अंदर तो आज
कुछ और जल रहा था
कजरी ने कदम बढाया था
वो आज इस दहलीज़ को लाँघ कर
उस दुनिया मे जाने की
कशमकश मे खड़ी थी
आख़िरी लम्हा था घर का
इस दहलीज़ को कई
बार लाँघा उसने
पर आज वो
अहसास कुछ अलग थे
उस पार दूसरी दुनिया
आंखे खोले खड़ी थी
कल फिर ये रिश्ते
बदल चुके होंगे
बापू की प्यारी बिटिया
भाई की संस्कारी बहन
एक कदम बढाते
अपने अपने ना होंगे
ये दहलीज़ लाँघ कर
मै शायद मे ना रहूंगी
पर प्यार तेरे ख़याल हे
की मै आज सब छोड़ आई हू
तू आज फिर
मूझे नया नाम दे
फिर एक दहलीज़
पर एक नया रिश्ता होगा
मै वही रहूंगी
पर वो पुरानी दहलीज़
और रिश्ता ना होंगे
5 comments:
क्या बात है.. बहुत खूबसूरत
तू आज फिर
मूझे नया नाम दे
फिर एक दहलीज़
पर एक नया रिश्ता होगा
मै वही होंगी
पर वो पुरानी दहलीज़
और रिश्ता ना होंगे
बहुत खूब ..एक लड़की के दर्द को आपकी कलम ने बखूबी लिखा है ..लिखते रहे
behad khoobsoorati se ek ladki ke mann ke khayalat..utaar diye..aapne..
badhai..
likhte rahe..
badi gehrai...har pehlu ki baat kar di aap ne...mubarak ho...
एक नए आसमान की तलाश....एक नया सपना...जलते ख्याल...
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